नशे के गिरफ्त में तेजी से आ रही है नई पीढ़ी : विजय कुमार चौधरी

650 By 7newsindia.in Sun, Feb 4th 2018 / 13:54:05 बिहार     

अजय कुमार , संवाददाता 
राजगीर : आजाद हिंदुस्तान का युवा इन दिनों कैद में है, गिरफ्त में है। यह गिरफ्त और कैद सलाखों की नहीं, बल्कि नशाखोरी की है, जो धीरे-धीरे हिंदु्स्तान की उस आबादी को दिनों दिन कमजोर करती जा रही है जिस पर देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को नाज है। प्रधानमंत्री मोदी अपने भाषणों में अक्सर देश की 65 फीसदी युवा आबादी का जिक्र करते हैं और आबादी के इस हिस्से के दम पर ही वो सुनहरे भारत की उम्मीद भी लोगों को बंधाते हैं। लेकिन अफसोस इस बात का है कि यही युवा आबादी नशाखोरी के दलदल में न चाहते हुए भी फंसती जा रही है। कहते हैं कि युवा किसी देश के सुनहरे कल के निर्माता होते हैं। युवा न सिर्फ समाज को दिशा देने का काम करते हैं बल्कि वो समय के हिसाब से चीजों को ढालना भी बखूबी समझते हैं। मगर जब किसी देश की पढ़ी-लिखी युवा पीढ़ी नशे की गिरफ्त में हो तो वह देश न सिर्फ आर्थिक रूप से खोखला होता चला जाता है, बल्कि उसका नैतिक और सामाजिक विकास भी थम सा जाता है। नशाखोरी पर बोलते हुए राजगीर के गिरियक रोड स्थित बोस्को पब्लिक स्कूल के प्राचार्य सह निदेशक विजय कुमार चौधरी ने कहा कि देश के युवाओं को नशे की गिरफ्त में देख नरेंद्र मोदी का मन भी दुखी हो उठा है । उन्होंने युवाओॆ से अपील भी कि है की युवा इसकी गिरफ्त में न आएं, क्योंकि युवाओं को ही एक सशक्त भारत की बुनियाद रखनी है। नशाखोरी का असर न सिर्फ एक व्यक्ति और उसके परिवार पर पड़ता है बल्कि यह समाज और देश की अर्थव्यवस्था पर भी बुरा प्रभाव डालती है। बीड़ी, सिगरेट, शराब, कोकीन, हिरोइन, गांजा और स्मैक नशे की वो किस्में हैं जो समाज के युवाओं पर गंभीर असर डाल रही हैं। कोकीन, हिरोइन, और स्मैक तो ब्लैकमनी को व्हाइट करने का और अवैध करेंसी को देश में खपाने का औजार बन चुका हैं जो धीरे-धीरे देश की अर्थव्यवस्था को दीमक की तरह चाट रहा हैं। स्मैक की लत तो इतना व्यापक असर डालती है कि गिरफ्त में आने वाला अपना मानसिक संतुलन तक खो बैठता है और उसे तलब लगने पर हल हाल में स्मैक की डोज चाहिए ही होती है फिर उसे चाहें इसके लिए अपने घर के सामान तक को ही क्यों न बेचना पड़े। वहीं अगर सामाजिक और नैतिक पतन की बात करें तो देश के अधिकांश घरों में कलह और फूट की वजह भी नशाखोरी ही होती है। जानकार कहते हैं कि उन्ही घरों के बच्चे जल्दी नशाखोरी की गिरफ्त में आते हैं जो अपने घर में नशे का माहौल देखते हैं क्योंकि आपका घर ही प्राथमिक शिक्षा से लेकर नैतिक शिक्षा की प्रथम पाठशाला कहा जाता है। ऐसे में अगर देश का युवा समय रहते चेत जाए और नशाखोरी के गिरफ्त में पड़ने से पहले ही उसके बुरे प्रभावों के बारे में जान जाए तो न सिर्फ यह उसके लिए उचित होगा बल्कि उस समाज और देश का भी काफी हद तक भला हो जाएगा, जिसमें वो पला-बढ़ा है। अगर देश के सभी युवा इस बुरी आदत से दूर रहने का पक्का इरादा कर लें तो भारत के 65 फीसदी युवा वाकई में विश्व पटल पर तिरंगा फहरा सकते हैं।   

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