उद्यानिकी विभाग का कारनामा,लगाने थे सब्जियों के पौधे, लगा डाली धान की नर्सरी

594 By 7newsindia.in Mon, Jul 24th 2017 / 06:14:14 छत्तीसगढ़     

बिलासपुर।दो साल पहले शहर में जिस वेजिटेबल सीडलिंग प्रोडक्शन यूनिट की स्थापना लाखों किसानों को महज 75 पैसे में सब्जियों व फलदार पौधा देने के लिए की गई थी, अब वहां नर्सरी की इतनी जगह खाली है कि धान लगा दिया गया है। करीब 6 करोड़ रुपए की लागत से शुरू यूनिट में अभी तक टेक्निकल और मैकेनिकल स्टॉफ की भर्ती नहीं की जा सकी है। मंत्री के निरीक्षण के बाद उद्यान अधीक्षक से यूनिट का प्रभार छीन लिया गया पर इससे हालत नहीं सुधरी।
हरियाणा, महाराष्ट्र जैसे सब्जी व फल-फूल उत्पादक राज्यों की तर्ज पर उद्यानिकी विभाग ने बिलासपुर के सरकंडा में दो साल पहले 5.86 करोड़ की लागत से बिग प्लग टाइप वेजीटेबल सीडलिंग प्रोडक्शन यूनिट लगाई। रायपुर के करीब ग्राम बाना में दस साल पहले से ही यूनिट है लेकिन सितंबर 2015 को सरकंडा में यूनिट का उद्घाटन करते हुए मंत्री बृजमोहन अग्रवाल ने इसे बाना से भी अपग्रेड यूनिट बताया। ऑटोमेटिक यूनिट से हर माह बिलासपुर संभाग के किसानों के लिए 10 लाख तो एक वर्ष में एक करोड़ पौधे तैयार करने का दावा किया गया। किसान के बीज देने के महज 20 दिन बाद उसे 75 पैसे में पौधा देंगे। यह यूनिट बिलासपुर जिले के महज दो ब्लाकों के चंद किसानों तक सिमटकर रह गया है। यहां पौधे तैयार करने की तकनीक वैज्ञानिक है पर कोई एक्सपर्ट नहीं है। यह गैर प्रशिक्षित मजदूर व मालियों के भरोसे चल रहा है। नतीजा ये कि यहां जगह खाली न दिखे इसलिए धान की नर्सरी लगा दी गई है। जबकि धान उद्यानिकी का सब्जेक्ट नहीं है। इंदिरा गांधी कृषि विश्वविद्यालय रायपुर और बिलासपुर के एग्रीकल्चर कॉलेज में धान पर कई रिसर्च हो रहे हैं। यूनिट में मामूली सुविधाएं तक नहीं है।
अधीक्षक के सस्पेंड होने का असर नहीं
जून में मंत्री अग्रवाल ने सीडलिंग यूनिट का निरीक्षण किया। वहां मशीन बंद होने पर वे भड़क गए। उन्होंने उप संचालक केके मिश्रा से स्थिति में सुधार लाने कहा। उन्होंने उद्यान अधीक्षक व यूनिट के प्रभारी एसके पांडेय को सस्पेंड करने के निर्देश दिए। अधीक्षक के सस्पेंड होने के बाद व्यवस्था में सुधार होना था लेकिन अभी भी वहां स्थिति पहले जैसी ही है। फिलहाल स्थिति में सुधार नहीं दिख रहा है।
यूनिट लगाने का मकसद ही बदल गया
जानकारों के मुताबिक यूनिट में न तो मैकेनिकल स्टॉफ है और न ही टेक्निकल स्टॉफ। यह चतुर्थ वर्ग मालियों के भरोसे चल रहा है। बिजली कनेक्शन भी उद्यान विभाग के दफ्तर से लाया गया है जबकि वहां लगी हैवी मशीन को चलाने के लिए अलग ट्रांसफार्मर लगाया जाना चाहिए था। हद तो ये है कि करोड़ों के यूनिट में फल, फूल और सब्जियों की बजाय धान की नर्सरी उगाई जा रही है। यानी मकसद ही बदल गया है। यह बड़ी गड़बड़ी है।

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