वाजपेयी का प्लेन नहीं उतरने दिया था MP के इस नेता ने, जानिए श्रीनिवास के 10 पॉलिटिकल किस्से ....

545 By 7newsindia.in Sun, Jan 21st 2018 / 11:09:34 मध्य प्रदेश     
कांग्रेस नेता दादा श्रीनिवास तिवारी अब नहीं हैं। लेकिन, उनके राजनैतिक किस्से हमेशा उनकी याद दिलाएंगे। ‘सफेद शेर’ के नाम से ख्यात रहे पूर्व विस अध्यक्ष श्रीनिवास से जुड़े लोग अनगिनत अनुभवों को कि स्सों के तौर पर सुनाते रहे हैं। 
विंध्य पुरुष श्रीनिवास बीते कुछ वर्षों से अस्वस्थता के चलते सियासत में हाशिए पर जरूर थे, पर उनकी मौजूदगी ही प्रदेशभर में समर्थकों की ऊर्जा थी। सच कहा जाए तो, प्रदेश विधानसभा में अध्यक्ष की भूमिका, सदन और सरकार पर नियंत्रण का पाठ उन्होंने ही पढ़ाया। दबंग आवाज के धनी ‘दादा’ की यादें सदन से लेकर रीवा शहर तक अविस्मृत होंगी।
गहन संसदीय ज्ञान, सदन पर पकड़, कानून की जानकारी और लंबे राजनैतिक अनुभव के कारण ही उन्हें विधान पुरुष माना गया। प्रतिद्वंद्वियों पर अंकुश रखने की कला में माहिर श्रीनिवास ने कभी आरोपों और आक्षेपों की परवाह नहीं की। जनहित, विंध्य हित और सत्ता की निरंकुशता के प्रति प्रतिकार को धर्म की तरह निभाया। बात चाहे स्वतंत्रता पूर्व की हो या अपनी चुनी हुई सरकारों के निर्णयों की। अविभाजित मप्र और उसके बाद भी उन्होंने पृथक विंध्य की वकालत की। वह यादगार दिन था जब विंध्य प्रदेश का विलयकर मप्र बनाया जाना था। और, उसकी पूर्व संध्या पर हुई बहस में सदन में लगातार ५ घंटे तक पृथक विंध्य प्रदेश के पक्ष में भाषण देकर सदस्यों को स्तब्ध कर दिया था। सदन मौन रहकर उनकी बात सुनता रहा। इसी तरह जमीदारी प्रथा के खिलाफ भी ७ घंटे भाषण दिया। कांग्रेस में उनकी राजनैतिक प्रतिद्वंद्विता विंध्य के ही दूसरे दिग्गज नेता स्व. अर्जुन सिंह से बनी रही। लेकिन, दोनों नेता एक-दूसरे की विद्वता का सम्मान करते थे। हालांकि, दोनों पर जातिगत राजनीति को प्रश्रय देने का आरोप आजीवन लगता रहा। बावजूद, दोनों के कट्टर समर्थकों की बड़ी संख्या है। जो उनके न रहने पर भी केवल अपने नेताओं के नाम पर जुट जाते हैं। कांग्रेस के भीतर प्रदेशभर में श्रीनिवास और अर्जुन सिंह की राजनैतिक प्रतिद्वंद्विता के अनगिनत किस्से आम हैं। बड़ी और सफेद भौंहों के लिए दादा और मंद मुस्कान के लिए पहचाने जाने वाले कुंवर ने अपनों को उपकृत करने के लिए नियमों की परवाह नहीं की। यही वजह है, जिसका भी भला किया वह उनका हो गया। समाजवाद के रास्ते कांग्रेस में आए श्रीनिवास ने समय-समय पर होने वाले मतभेदों के बाद भी पार्टी का साथ नहीं छोड़ा। लेकिन, असहमत होने पर अपनी बात भी पूरी ताकत और बेबाकी से रखी। और इन्हीं खूबियों के लिए श्रीनिवास कांग्रेस और प्रदेश में हमेशा याद किए जाएंगे।

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