एक बहू की जिल्लत भरी जिंदगी की कहानी

642 By 7newsindia.in Sat, Sep 30th 2017 / 08:24:20 लेख- कविता     

- सौरभ कुमार - 

प्रिया अभी रसोई से अभी खाना लेकर खाने को बैठी ही थी , तभी उसकी सास ने उसे आवाज़ दी। घर वालों को खाना खिलाने में उसे तीन बज गए थे। प्रिया ने सुबह एक कप चाय पी थी और अब तीन बज गए थे बिना कुछ खाये पिए। खैर , उसने किसी तरह से खाना खाया और सोचने लगी . ...... "क्या इसी दिन के लिए वो इस घर में आई थी कि सुबह उठकर चाय बनाओ, फिर बच्चों को स्कूल भेजने के लिए नाश्ता बनाओ, उसके बाद घर वालों के लिए नाश्ता बनाओ,  माँ जी को नाश्ता दो, बर्तन साफ़ करो, झाड़ू लगाओ, पौंछा लगाओ, घर का सब काम निपटाने के बाद खाना खाने बैठो तो तीन बज जाते हैं।" आज कोई उसे पूछने वाला भी नहीं है कि खाना खाया या नहीं खाया ? दिन भर नौकरानी जैसे खटने और घर का इतना सारा काम करने के बावजूद अब तो इस घर में उसे ताने सुनने और जिल्लत के अलावा कुछ नहीं मिलता। वो हमेशा उनके ताने सुनती और अंदर ही अंदर मन में घुटन महसूस करती। वह और कर भी क्या सकता थी ? पूरे दिन घर के काम करने के बाद भी कोई उससे प्यार से बात तक नहीं करता था। घर में सब उसे सिर्फ नौकरानी समझते थे । सुबह पांच बजे उठती और रात को बारह बजे सोती थी। पूरे दिन फिर जरा सा एक पल को आराम करने को भी समय नहीं मिलता। कहते हैं न कि एक हंसते हुए इंसान के चेहरे के पीछे भी काफी दर्द छुपा होता है , जो किसी दूसरे इंसान को कभी दिखाई नहीं देता। उसकी स्थिति भी कुछ इस तरह की ही थी। प्रिया का पति भी उससे प्यार नहीं करता था और न ही कभी उसकी भावनाओं की क़द्र करता था। बीमार रहने के बाबजूद भी घर का सारा काम उसे करना पड़ता। उसे दुनिया बहुत मतलबी सी दिखाई दे रही थी,  उसका विश्वास उठता जा रहा था , उसे नफरत होने लगी थी अपने ही आप से। वो यह सोच-सोच कर अपने आप को हारा हुआ महसूस कर रही थी कि जब वो अपने पति को और अपने सास- ससुर को इतना प्यार सम्मान देती है फिर भी उसके दिल की बात को कोई नहीं समझता।  वह लगातार रोते जा रही थी और उसकी आँखों से आँसू किसी नदी की धारा की तरह अविरल बह रहे थे...

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