समाज के लिये एक मिशाल बन कर सीधी को गौरवान्वित कर रही मातृ शक्तियॉ

1872 By 7newsindia.in Thu, Mar 7th 2019 / 18:41:20 मध्य प्रदेश     

महिलाओं ने अन्तर्रांष्ट्रीय पटल पर जिले का नाम किया अंकित

 
सीधी,
युग चाहे जो भी रहा हो, लेकिन महिलाओं ने कड़े संघर्ष के बाद समाज में अपना अलग मुकाम हासिल करने में सफल रही हैं। आज वे लगभग हर क्षेत्र में सक्रिय हो कर समाज व देश के विकास में वेहतर ढंग से अपना योगदान दे रही हैं। संजीव मिश्रा रहीस व पूरे टीम की ओर से हम सलाम करते हैं उन मातृ शक्तियों को जिन्होने यह सावित किया काम घर की दहलीज के अन्दर का हो या फिर बाहर का, वे किसी से भी कम नहीं है। भारतीय संस्कृति में नारी के सम्मान को बहुत महत्व दिया गया है। संस्कृत में एक श्लोक है. ।। श्यस्य पूज्यंते नार्यस्तु तत्र रमन्ते देवता।। अर्थात जहां नारी की पूजा होती है, वहां देवता निवास करते हैं। किंतु वर्तमान में जो हालात दिखाई देते हैं, उससे यही प्रतीत होता है कि नारी को समाज में वास्तविक सम्मान नहीं मिल पा रहा है। उसे भोग की वस्तु समझकर आदमी अपने तरीके से इस्तेमाल कर रहा है, यह बेहद चिंताजनक बात है। 
 

माता का हमेशा सम्मान हो - 

मांॅ अर्थात माता के रूप में नारी धरती पर अपने सबसे पवित्रतम रूप में है। माता यानी जननी। मां को ईश्वर से भी बढ़कर माना गया है, क्योंकि ईश्वर की जन्मदात्री भी नारी ही रही है। मां देवकी, कृष्ण, तथा मां पार्वती, गणपति, कार्तिके के संदर्भ में हम देख सकते हैं इसे। किंतु बदलते समय के हिसाब से संतानों ने अपनी मां, बहुओं ने अपने सास ससुर को महत्व देना कम कर दिया है। यह चिंताजनक पहलू है। सब धन. लिप्सा व अपने स्वार्थ में डूबते जा रहे हैं। परंतु जन्म देने वाली माता के रूप में नारी का सम्मान अनिवार्य रूप से होना चाहिए जो वर्तमान में कम हो गया है।
 
 

भारतीय संसद का प्रतिनिधित्व कर सीधी का बढाया मान - श्रीमती रीती पाठक

सीधी जिले की लोक प्रिय सांसद, विनम्र, सहज, सरल, मिलनसार के साथ अपने दायित्व निवर्हन में वखूबी दक्षता हासिल करने वाली श्रीमती रीती पाठक पति रजनीश पाठक ने जिले का मान बढानें में कोई भी कोर कसर नहीं छोड़ी है। भारत देश के आजादी के पश्चात भारतीय संसद की लोक लेखा जोखा समिति में सदस्य के रूप में श्रीमती पाठक का चयन किया गया। जिले के लिये यह अपने आप में एक गौरव का विषय है कि सीधी की बहू -बेटी ने भारतीय राजनीति में इतिहास लिखने में सफल रहीं। श्रीमती पाठक के कदम यॅही नहीं रूके इसके पश्चात संयुक्त राष्ट्र संघ में भारतीय संसद का प्रतिनिधित्व करते हुए कई बार विदेशी धरा पर भारत के गौरव गाथा को प्रस्तुत किया साथ ही भारत को विश्व गुरू बनाने की पहल में सार्थक योगदान प्रदान किया गया।  श्रीमती पाठक ने सांसद पद पर रहते हुए जिले के विकास में रेल लाने की सार्थक पहल, शिक्षा, स्वास्थ, के साथ ही आखरी पंक्ति के आखरी व्यक्ति तक केन्द्र एवं राज्य की योजनाओं के क्रियान्वयन में सफलता अर्जित की हैं।
 
 
 

बाजी मार रही हैं बेटिंयॉ -

जिले की बेटिंयो के कृतित्व पर नजर डालें तो हम पाते हैं कि ये हर क्षेत्र में ये जिले को गौरवान्वित करने में प्रथम स्थान पे विराजमान हैं। बात फिर चाहे विभिन्न परीक्षाओं की मेरिट लिस्ट की हो या फिर खेल कूद, संगीत, या अन्य क्षेत्रों की बेटियां तेजी से आगे बढ़ रही हैं। किसी समय में इन्हें कमजोर समझा जाता था, किंतु इन्होंने अपनी मेहनत और मेधा शक्ति के बल पर हर क्षेत्र में प्रवीणता अर्जित कर ली है। सीधी की युवा प्रतिभाओं में जुही बनर्जी, शालिनी सिंह भादौरिया, काजोल बनर्जी, सपना सोधिंया,अनिषा यादव, वैष्णवी त्रिपाठी, शिवानी केवट, दिब्या चतुर्वेदी, मान्या शुक्ला, प्रियंका केवट, काजू सोधिया, ने अपने घर परिवार, समाज व जिले को वूशू खेल में राष्ट्रीय स्तर पर जिले को गौरवान्वित किया है। वहीं ंयोगिता सिंह भदौरिया इनटरनेशनल वूशू खेल मे तृतीय मेडल हासिल किया है। दक्षिण कोरिया सहित गितांजलि त्रिपाठी ने विदेश की धरा चाइना मे तृतीय मेडल प्राप्त कर सीधी नहीं अपितु भारत के वीरता का परचम लहराया है। इनकी इस विशेष उपलब्धि पर एस०एस०बी० दिल्ली में नौकरी देकर सीधी की बेटी को उपकृत करने का प्रयास किया है।

 

कंधे से कंधा मिलाकर चलती नारी - श्रीमती निशा मिश्रा

नारी का सारा जीवन पुरुष के साथ कंधे से कंधा मिलाकर चलने में ही बीत जाता है। पहले पिता की छत्रछाया में उसका बचपन बीतता है। पिता के घर में भी उसे घर का कामकाज करना होता है तथा साथ ही अपनी पढ़ाई भी जारी रखनी होती है। उसका यह क्रम विवाह तक जारी रहता है। किन्तु नारी अपने अदम्य साहस व शक्ति का परिचय आवश्यकतानुसार प्रदर्शित आवश्य करती है। ऐसी ही जिले की एक बेटी और बहू के रूप में अपने जीवन को बखूबी निभाते हुए श्रीमती निशा मिश्रा ने समाज सेवा के लिये अपने जीवन को आहुत कर अन्य महिलाओं हेतु प्रेरणा का श्रोत बनी हैं। 
जिले में पारिवारिक विघटन रोकनें में अधिवक्ता श्रीमती निशा ने प्रमुख भूमिका निभाते हुए पिछले डेढ दशक से भी ज्यादा समय से लगातार लगी हुई हैं। अपनी कुशाग्र बुद्वि के चलते सैकड़ो विघटित परिवारों को दी गयी समझाईस के बाद आज हॅसी खुसी दाम्पत्य जीवन बिता रहे हैं। वर्तमान समय में अन्य प्रमुख दायित्व निर्वहन करन के बाद भी किसी का पारिवारिक जीवन में खटास न आयें, इसके लिये स्वयं के व्यय पर भी यह प्रयास सदा सर्वदा चलता रहता है। समाज में अपने सार्थक संदेश के द्वारा श्रीमती निशा  ने एक शसक्त घर परिवार व समाज का निर्माण करने में काफी हद तक सफल प्रतीत होती हैं।
उपलब्धिों में नजर डालें तो अन्तर्राष्ट्रीय महिला दिवस २०१६ में महिला शसक्तिकरण के क्षेत्र में उतकृष्ट कार्य करने के लिये म०प्र० स्थापना दिवस समारोह २०१४ में समाज सेवा के क्षेत्र में सराहनीय कार्य के लिये कार्यालय पुलिस अधीक्षक सीधी द्वारा गणतंत्र दिवस समारोह में वर्ष २००६, २००७,२००८, २०१०,२०१२ सहित अन्य वर्षो में भी लगातार महिला हिंशा की रोकथाम, एवं लैंगिंक उत्पीडन की रोकथाम के लिये जिला प्रशासन द्वारा सराहना एवं पुरूस्कृत किया गया।
अधिवक्ता श्रीमती निशा मिश्रा
अध्यक्ष, आन्तरिक परिवाद समिति -सिविल कोर्ट -०  पुलिस परामर्श केन्द्र पूर्व कोआर्डिनेटर सहित अन्य सामजिक सगंठन में सक्रिय,


जन्मोत्सव एवं अन्तरराष्ट्रीय महिला दिवस एक साथ - अजीता 

विवाह पश्चात तो महिलाओं पर और भी भारी जिम्मेदारि?यां आ जाती है। पति, सास,ससुर, देवर, ननद की सेवा के पश्चात उनके पास अपने लिए समय ही नहीं बचता। संतान के जन्म के बाद तो उनकी जिम्मेदारी और भी बढ़ जाती है। घर.परिवार, चौके.चूल्हे में खटने में ही एक आम महिला का जीवन कब बीत जाता है, पता ही नहीं चलता। कई बार वे अपने अरमानों का भी गला घोंट देती हैं घर.परिवार की खातिर पर इन सब के बाबजूद भी कुछ महिलायें समाज सेवा के लिये थोड़ा थोड़ा समय निरन्तर निकालते हुए समाज के लिये एक मिशाल के रूप में श्रीमती अजीता द्विवेदी ने अपनी पहचान बनाने में सफल रही हैं। श्रीमती द्विवेदी शिक्षक पत्नी पंकज द्विवेदी का जन्म ०८ मार्च को हुआ और सुखद संयोग है कि अन्तराष्ट्रीय महिला दिवस का उत्सव एवं जन्मोत्सव एक साथ मनाया जाता है। श्री द्विवदी भारत स्काउट गाईड, जिला डीओसी, मानवाधिकारी संगठन की राष्ट्रीय सचिव, एसएसएमपी शिक्षक संघ की राष्ट्रीय सचिव, अखिल भारतीय संस्था संस्कार भारती जिलाध्यक्ष, सहित अन्य पदों के दायित्व का निर्वहन भॅली भॉति करने में दक्षता हासिल की है। श्रीमती द्विवेदी की प्राथमिक शिक्षा दिक्षा संस्कारों की जननी सरस्वती विद्यालय में हुई उसके पश्चात बीएड, बीटीआई से डीएड, संगीत क्षेत्र में एम म्यूज, सिलाई कढाई बुनाई का डिप्लोमा, गायत्री शक्ति पीठ शंति कुंज हरिद्वार द्वारा दिक्षा प्राप्त हुई साथ अन्य दर्जनो महत्वपूर्ण उपलब्धियॉ हॉसिल हैं। सन् २००९ में डमरू बजाये भोले नाथ म्यूजिकल एलबम रिलीज कराया गया जिसमें श्रीमती अजीता ने सुर्खियॉ बटोरने में सफल रहीं। 

 
 

पुलसिंग और समाजिक जीवन को निभा रहीं बखूबी -

कुॅ० सुप्रिया मिश्रा पिता महावीर मिश्रा ने अपने पिता को प्रथम गुरू मानते हुए शिक्षा दिक्षा, खेल व सामजिक जीवन को बखुबी निभाते हुए अपने पिता की भॉति जन सेवा के लिये पुलिस की नौकरी का चुनाव किया। खेल कूद में विशेष रूचि होने के कारण ग्यारह वार स्टेट लेवल, एवं दो बार नेशनल लेवल पर सीधी के परचम को लहराया। नौकरी के दौरान मध्य प्रदेश शासन के मंशानुरूप कुशलता के साथ दायित्व निर्वहन के चलते वरिष्ट अधिकारियों एवं कैबनेट मंत्री द्वारा विशेष पुरूस्कार से नवाजा गया। अपराधों पर नियंत्रण के साथ एटीएम से संबधित चोरी एवं महिला उत्पीडऩ संबधित प्रकरणों में सुप्रिया मिश्रा के कार्यो की हर जगह प्रसंसा की जाती है।

 

स्वास्थय के क्षेत्र में विंघ्य में प्रथम महिला चिकित्सक - डॉ बीना

टेस्ट ट्यूब बेबी प्रक्रिया विधि में विन्ध्य की प्रथम महिला चिकित्सक के रूप में डॉ० बीना मिश्रा पति डॉ० अनूप मिश्रा मेडीसीन, हड्डी रोग विशेषज्ञ ने स्वास्थय के क्षेत्र में सर्वश्रेष्ट जगह बना कर सीधी जिले के गौरव को बढाने का सार्थक प्रयास किया है। श्रीमती बीना मिश्रा ने अपने चिकित्सकीय क्षेत्र में वेहतर कला प्रदर्शन कर कई असंभव और जटिल रोगों जड़ से मिटाया है, फिर बात महिला के पेट से१०केजी ट्यूमर निकालने की हो या सैकड़ो बॉझपन का दंश झेल रही महिलाओं के घर पर किलकारियॉ गूंजनें की बात हो। आधुनिक तकनिक एवं विदेशी उपकरण की मदत से महिला रोग विशेषज्ञ डॉ० बीना मिश्रा  नर सेवा ही नारायण सेवा को चरितार्थ किया है। 

 

नन्ही सी बाल कलाकारा ने जीता सभी का दिल - जान्हवी गुप्ता 

तीन बर्ष की उम्र से ही जान्हवी गुप्ता पिता मुकेश, मॉ रेनू गुप्ता ने मनमोहक नृत्य कला प्रदर्शन कर कला पारखियों का प्यार दुलार एवं आर्शिवाद प्राप्त किया। जन्नत की उपलब्धियों में दर्जनों उपलब्धियॉ शामिल है, बॉत फिर चाहे सीधी चैलेंज क्रिकेट कप सेशन 8 मे झूठ बोले कौवा काटे महज तीन साल की उम्र में सांस्कृतिक नित्य कला से सब का मन मोहा। सुर ताल महोत्सव रीवा मे सन 2017 में जानवी गुप्ता एंड ओजस्वी सोनी मिलकर सीधी का नाम गौरवान्वित किया एवं द्वितीय पुरस्कार प्राप्त किया। सीधी शिखर सम्मान समारोह 2017 से जानवी गुप्ता को बाल नित्य कला में सम्मानित किया गया। स्वतंत्रता दिवस संध्या बेला पर मां तुझे सलाम, कार्यक्रम मानस भवन विगत 2 वर्षों से लगातार शानदार प्रस्तुति में अपना नित्य प्रस्तुति देकर अपना सभी दर्शकों का मन मोह लिया। जानवी गुप्ता अपने विद्यालय  श्री अरविंदो हायर सेकेंडरी स्कूल सीधी मे नर्सरी, एलकेजी एवं प्रथम क्लास में प्रथम स्थान लाकर शिक्षा एवं कला में ख्याति हासिल की है।  
 
 

क्रिकेट के क्षेत्र में जिले को गौरवान्वित करने वाली बेटियॉ 

 
 
शिवानी शुक्ला, आन्ध्रप्रदेश मे आयोजित राष्ट्रीय शालेय बालिका क्रिकेट प्रतियोगिता अन्डर 17 मे हिस्सा लेकर उत्क्रष्ट प्रदर्शन किया। पिछले 2 वर्षो से ललिता शर्मा स्पोर्टस एकाडमी मे क्रिकेट का अभ्यास कर रही है।

नैन्सी सोनी

खण्डवा मे आयोजित राष्ट्रीय शालेय बालिका क्रिकेट प्रतियोगिता अन्डर 17 मे हिस्सा लेकर उत्क्रष्ट प्रदर्शन किया। पिछले 2 वर्षो से ललिता शर्मा स्पोर्टस एकाडमी मे क्रिकेट का अभ्यास कर रही है
 
 
 

उजाला बंशल

खण्डवा मे आयोजित राष्ट्रीय शालेय बालिका क्रिकेट प्रतियोगिता अन्डर 17 मे हिस्सा लेकर उत्क्रष्ट प्रदर्शन किया। पिछले 2 वर्षो से ललिता शर्मा स्पोर्टस एकाडमी मे क्रिकेट का अभ्यास कर रही है

 

मजबूरियों के आगे न मानें कभी भी हार- हीरा बाई 

कुसमी जनपद पंचायत की अध्यक्ष के रूप में सरहानीय कार्य के लिये जाने जानी वाली हीरा बाई ङ्क्षसह अपने अदम्य साहस, व समाज सेवा के लिये जानी जाती हैं।  हीरा बाई सिंह गोंड आदिवासी महिलाओं के लिये एक मिशाल के रूप में प्रस्तुत हुई हैं। जिन्होने ने अकेले दम पर अपने घर परिवार व समाज का भरपूर सहयोग कर समाज में अपनी एक अलग पहचान बनाई है। अपने परिवार के सहयोग के बिना ही बच्चों को अच्छी शिक्षा दिखा के साथ राजनीति के मंच पर अपने आप को सफल नेता के रूप में स्थापित की हैं। हीरा बाई का पूरा जीवन संघर्षो से लगातार घिरा रहा किन्तु आपने कभी भी मजबूरियों के आगे हार नहीं मानी है। 

कुछ वेहतर करने का जज्बा इंसान को आगे बढाता है - डॉ० दीपा

जिला चिकित्सालय में पदस्थ डॉ० दीपा रानी इशरानी जहॉ सरल स्वाभाव के साथ वेहतर चिकित्सा देने के लिये जानी जाती हैं, वहीं आपने जिले की महिलाओं के लिये एक मिशाल बन कर उभरी हैं। आपने सर्व प्रथम कुछ वेहतर करने की जज्बे को अपने घर पर अपनाते हुए बेटी को कला कौशल में दक्षता दिलायी उसके पश्चात समाज में कई सामजिक कार्यक्रमों एंव संगठनो के माध्यम से लगातार समाज सेवा के कई आयामों को छुआ है। 

 

आदिवासियों के लिये बनी मसीहा - अर्चना 

श्रीमती अर्चना सिंह पति भूपाल सिंह मझौली निवासी ने अपने वंश परम्परा को निभाते हुए नर सेवा ही नारायण सेवा को चरितार्थ किया है। आप को बताते चलें कि मझौली क्षेत्र के वरिष्ट समाज सेवी वैद्यनाथ सिंह मास्टर साहब की बहू अर्चना ने परिवार के गुणों का अनुशरण करते हुए विकास खण्ड कुसमी के सबसे दुर्गम क्षेत्र जो संजय नेशनल पार्क के आस पास के क्षेत्रों में जहॉ अस्सी प्रतिशत आदिवासी जाति के लोग निवास करते जहॉ पहुॅच मार्ग अति दुर्गम माना जाता है, ऐसे क्षेत्रों में घर घर तक लगातार पहुॅच कर लोगों की समस्याओं को अपनी समस्या समझ कर उनके निवारण हेतु व्यक्तिगत तौर से एवं आवश्यकता अनुसार साससकीय तंत्र के माध्यम से सहयोग लेकर हर हाल में सहयोग प्रदान किया जाता है। 

 

अन्तरराष्ट्रीय महिला दिवस हर वर्ष  ८ मार्च को मनाया जाता है। ख्2, विश्व के विभिन्न क्षेत्रों में महिलाओं के प्रति सम्मान प्रशंसा और प्यार प्रकट करते हुए इस दिन को महिलाओं के आर्थिक राजनीतिक और सामाजिक उपलब्धियों के उपलक्ष्य में उत्सव के तौर पर मनाया जाता है। कुछ क्षेत्रों में यह दिवस अपना राजनीतिक मूलस्वरूप खो चूका है और अब यह मात्र महिलाओं के प्रति अपने प्यार को अभिव्यक्त करने हेतु एक तरह से मातृ दिवस और वेलेंटाइन डे की ही तरह बस एक अवसर बन कर रह गया हैं। हालांकि अन्य क्षेत्रों में संयुक्त राष्ट्र द्वारा चयनित राजनीतिक और मानव अधिकार विषयवस्तु के साथ महिलाओं के राजनीतिक एवं सामाजिक उत्थान के लिए अभी भी इसे बड़े जोर.शोर से मनाया जाता हैं। कुछ लोग बैंगनी रंग के रिबन पहनकर इस दिन का जश्न मनाते हैं। सबसे पहला दिवस न्यूयॉर्क शहर में 1909 में एक समाजवादी राजनीतिक कार्यक्रम के रूप में आयोजित किया गया था। 1917 में सोवियत संघ ने इस दिन को एक राष्ट्रीय अवकाश घोषित कियाए और यह आसपास के अन्य देशों में फैल गया। इसे अब कई पूर्वी देशों में भी मनाया जाता है।


इतिहास पादित करें,

अमेरिका में सोशलिस्ट पार्टी के आह्वान परए यह दिवस सबसे पहले 28 फऱवरी 1909 को मनाया गया। इसके बाद यह फरवरी के आखिरी इतवार के दिन मनाया जाने लगा। 1910 में सोशलिस्ट इंटरनेशनल के कोपेनहेगन सम्मेलन में इसे अन्तर्राष्ट्रीय दर्जा दिया गया। उस समय इसका प्रमुख ध्येय महिलाओं को वोट देने का अधिकार दिलवाना थाए क्योंकि उस समय अधिकतर देशों में महिला को वोट देने का अधिकार नहीं था।

1917 में रूस की महिलाओं नेए महिला दिवस पर रोटी और कपड़े के लिये हड़ताल पर जाने का फैसला किया। यह हड़ताल भी ऐतिहासिक थी। ज़ार ने सत्ता छोड़ीए अन्तरिम सरकार ने महिलाओं को वोट देने के अधिकार दिया। उस समय रूस में जुलियन कैलेंडर चलता था और बाकी दुनिया में ग्रेगेरियन कैलेंडर। इन दोनों की तारीखों में कुछ अन्तर है। जुलियन कैलेंडर के मुताबिक 1917 की फरवरी का आखिरी इतवार 23 फऱवरी को था जब की ग्रेगेरियन कैलैंडर के अनुसार उस दिन 8 मार्च थी। इस समय पूरी दुनिया में ;यहां तक रूस में भीद्ध ग्रेगेरियन कैलैंडर चलता है। इसी लिये 8 मार्च महिला दिवस के रूप में मनाया जाने लगा।


इतिहास से

देवी अहिल्याबाई होलकरए मदर टेरेसाए इला भट्टए महादेवी वर्माए राजकुमारी अमृत कौरए अरुणा आसफ अलीए सुचेता कृपलानी और कस्तूरबा गांधी आदि जैसी कुछ प्रसिद्ध महिलाओं ने अपने मन.वचन व कर्म से सारे जग.संसार में अपना नाम रोशन किया है। कस्तूरबा गांधी ने महात्मा गांधी का बायां हाथ बनकर उनके कंधे से कंधा मिलाकर देश को आजाद करवाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। 
 
इंदिरा गांधी ने अपने दृढ़.संकल्प के बल पर भारत व विश्व राजनीति को प्रभावित किया है। उन्हें लौह.महिला यूं ही नहीं कहा जाता है। इंदिरा गांधी ने पिताए पति व एक पुत्र के निधन के बावजूद हौसला नहीं खोया। दृढ़ चट्टान की तरह वे अपने कर्मक्षेत्र में कार्यरत रहीं। अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति रोनाल्ड रेगन तो उन्हें श्चतुर महिलाश् तक कहते थेए क्योंकि इंदिराजी राजनीति के साथ वाक्.चातुर्य में भी माहिर थीं।
 

अंत मे

अंत में हम यही कहना ठीक रहेगा कि हम हर महिला का सम्मान करें। अवहेलनाए भ्रूण हत्या और नारी की अहमियत न समझने के परिणाम स्वरूप महिलाओं की संख्याए पुरुषों के मुकाबले आधी भी नहीं बची है। इंसान को यह नहीं भूलना चाहिएए कि नारी द्वारा जन्म दिए जाने पर ही वह दुनिया में अस्तित्व बना पाया है और यहां तक पहुंचा है। उसे ठुकराना या अपमान करना सही नहीं है। भारतीय संस्कृति में महिलाओं को देवीए दुर्गा व लक्ष्मी आदि का यथोचित सम्मान दिया गया है अतरू उसे उचित सम्मान दिया ही जाना चाहिए।

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